ग्रंथ से भक्ति से भगवान तक
भक्ति शब्द की व्युत्पत्ति 'भज्' धातु से हुई है, जिसका अर्थ 'सेवा करना' या 'भजना' है, अर्थात् श्रद्धा और प्रेमपूर्वक इष्ट देवता के प्रति आसक्ति। नारदभक्तिसूत्र में भक्ति को परम प्रेमरूप और अमृतस्वरूप कहा गया है। इसको प्राप्त कर मनुष्य कृतकृत्य, संतृप्त और अमर हो जाता है। व्यास ने पूजा में अनुराग को भक्ति कहा है। गर्ग के अनुसार कथा श्रवण में अनुरक्ति ही भक्ति है। भारतीय धार्मिक साहित्य में भक्ति का उदय वैदिक काल से ही दिखाई पड़ता है। देवों के रूपदर्शन, उनकी स्तुति के गायन, उनके साहचर्य के लिए उत्सुकता, उनके प्रति समर्पण आदि में आनन्द का अनुभव-ये सभी उपादान वेदों में यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। ऋग्वेद के विष्णुसूक्त और वरुणसूक्त में भक्ति के मूल तत्त्व प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं।
आध्यात्मिक तत्वज्ञान से
भक्ति से भगवान तक
भक्ति से भगवान तक
संत रामपाल जी महाराज ने श्री ब्रह्मा जी, श्री शिव जी तथा श्री विष्णु जी इन तीनों गुणों के बारे में विस्तार से समझाया है जो आज तक कोई नहीं समझा सका।
ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी इन भगवानों से भी ऊपर असंख्य भुजा का परमात्मा सतपुरुष है। जो सत्यलोक में रहता है तथा उसके अन्तर्गत सर्वलोक तथा अन्य सर्व ब्रह्मण्ड आते हैं और वहाँ पर सतभक्ति व सत्यनाम-सारनाम के जाप द्वारा ही जाया जाएगा जो पूरे गुरु से प्राप्त होता है। इसे ही पूर्ण मोक्ष कहते हैं।
पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी के प्रयासों से भेदभाव की स्थिति समाप्त हो रही है। समाज में शांति स्थापित हो रही है। संत रामपाल जी महाराज जी कहते हैं:-
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
भक्ति से भगवान तक पहुँचने का शास्त्रानुकूल मार्ग सिर्फ तत्वदर्शी संत ही बता सकते हैं।
श्रीमदभगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16,17 में कहा है कि यह संसार ऐसा है जैसे पीपल का वृक्ष है। जो संत इस संसार रूपी पीपल के वृक्ष की जड़ों से लेकर तीनों गुणों रूपी शाखाओं तक सर्वांग भिन्न-भिन्न बता देता है। वह संत वेद के तात्पर्य को जानने वाला है अर्थात् वह तत्वदर्शी संत है। जो की वर्तमान में सिर्फ संत रामपालजी महाराज हैं।
सूक्ष्मवेद में कहा है:-
“यह संसार समझदा नाहीं, कहंदा शाम दुपहरे नूँ।
गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूँ।।”
आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव से परमात्मा के विधान से परीचित न होने के कारण यह प्राणी इस दुःखों के घर संसार में महान कष्ट झेल रहा है और इसी को सुख स्थान मान रहा है।
भक्ति से भगवान तक जाने का शास्त्रानुकूल मार्ग जानें जिससे परम शांति, सुख व मोक्ष की प्राप्ति होगी, देखें साधना चैनल शाम 7:30 पर।
अध्यात्म में मूल रूप से पूजा, पूज्य, साधक तथा साधना शब्द आते हैं जिनको जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने विस्तार से समझाया है और भक्ति से भगवान तक की राह बताई है।
समाज में जो साधना प्रचलित है वह ना तो परमात्मा को पाने की है और ना ही वह मानसिक शांति दे सकती है। ना ही उससे कर्म की मार समाप्त हो सकती है।
तो वह कौन सी साधना है जिससे हम भक्ति करके भगवान को प्राप्त हो सकते हैं।
जानने के लिए अवश्य देखिए साधना चैनल शाम 07:30 बजे।
गीता जी में तीन प्रकार के भगवान बताए गए हैं - क्षर पुरुष, अक्षर पुरुष, परम अक्षर पुरुष।
परम अक्षर पुरुष ही परमात्मा सतपुरुष हैं। उनकी भक्ति करने से कर्मों की मार समाप्त होकर मानसिक शांति व पूर्ण मोक्ष मिलता है।
गीता जी अध्याय 3 के श्लोक 35 में कहा गया है कि दूसरों की दिखावटी घटिया साधना से अपनी शास्त्र विधि अनुसार साधना अच्छी है।
वर्तमान में शास्त्र अनुकूल साधना संत रामपाल जी महाराज के पास है।
उनसे नाम दीक्षा ग्रहण कीजिए और सद्भक्ति करके भगवान को प्राप्त कीजिए।
गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में कहा है कि तीनों प्रभुओं के पुजारी राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच, शास्त्र विरुद्ध साधना रूपी दुष्कर्म करने वाले मूर्ख हैं।
फिर वास्तव में किसकी भक्ति करनी चाहिए जिससे हम वास्तविक भगवान को प्राप्त कर सकते हैं? जानने के लिए अवश्य पढिए पुस्तक "ज्ञान गंगा"।
कबीर, जीवन तो थोड़ा ही भला, जै सत सुमरन होय।
लाख बरस का जीवना, लेखे धरै ना कोय।।
सत्य साधना बिना बहुत लंबी उम्र हमारे कोई काम नहीं आएगी क्योंकि इस लोक में दुख ही दुख है।
पूर्ण संत से नाम उपदेश लेकर नाम की कमाई करके हम सतलोक के अधिकारी हो सकते हैं। वर्तमान में वह पूर्ण संत रामपाल जी महाराज हैं।
मानव जीवन का मूल उद्देश्य "भक्ति से भगवान" तक जाकर पूर्ण मोक्ष पाना है।
जो की सिर्फ संत रामपालजी महाराज द्वारा बताई शास्त्रानुसार सत्य साधना करने से ही संभव है।
भक्ति से भगवान तक पहुँचने का शास्त्रानुकूल मार्ग जानने के लिए देखें साधना चैनल शाम 07:30 बजे।
भक्तिहीन प्राणी को यम के दूत पकड़कर ले जाते हैं और नरक मे डाल देते हैं। नरक के बाद वे प्राणी चौरासी लाख योनियों में जाते हैं। अगर आपको इन सब दुखों से बचना है तो सतभक्ति करो। वर्तमान में सतभक्ति संत रामपाल जी महाराज जी ही दे रहे हैं। जिससे सभी प्रकार के रोग कष्ट दूर होते हैं।
पवित्र गीता में भी लिखा है, यही आदेश वेदों में भी है कि सतभक्ति करना जरूरी है। यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 15 में कहा है कि ओम नाम का स्मरण कार्य करते-करते करो, विशेष तड़प के साथ स्मरण करो, मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य जानकर स्मरण करो।
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